सासु माँ, ससुराल और मैं शैलजा .......
सास बहू और मायका - कहानी भाग – 3
आज सुबह बैठे
बैठे बस शैलजा एक ही बात सोचे जा रही थी......जिस ससुराल को जोड़े रखने के लिए वो
एक रोबोटिक गुड़िया बनी रही, हर चीज चुपचाप सहन करते गयी, गलत-सलत सब
कुछ...... आज उसी चुप्पी की वजह से सबने उसको "मौनी गुड़िया " समझ लिया| एक ऐसा बेजान खिलौना, जिसके सामने सब
एक एक करके अपनी भड़ास निकालें और वो बस मुस्कुराते रहे|
कहते हैं ना, अति किसी चीज की अच्छी नही होती| माता सीता के दर्द की जब अति हो गयी, वो सती होकर भी बस परीक्षा पर परीक्षा, दुख पर दुख सहती रही, पर अति होने पर धरती माँ फटी और वो उसमें समा गयी| कभी कभी किसी को सीधा समझ कर उसकी अच्छाई का इतना भी फायदा नही उठाना चाहिए कि उसे जीने से मारना अच्छा लगे|
आज शैलजा सोचने
लगी, मेरा मायका, जहाँ कभी किसी की
छोटी से छोटी बात तक सहन नहीं कि आज ससुराल में हर किसी की गलत से गलत बात पर चुप
रही| आठ साल हो गए हर गलत से गलत बात सहन करते करते
अपने से लेकर अपने उन लोगों के लिए तक जिन्होंने हमे पालने में अपना जी जान लगा
दिया| उनके नाम पर तक कहना न कहना बोल गए हैं सब | सब कुछ चुप्पी के साथ सहन किया, बिना किसी से कुछ
कहे| मन करता था इनको भी बताऊं कितना गलत बोलते हैं
किसी और कि लड़की से, .... पर माँ के संस्कार कहो या घर को जोड़ कर रखने की
चाह, जिनको मुझसे कुछ
कहने में शर्म आनी चाहिए थी, जिनको शैलजा ताने मार कर चुप कर सकती थी, वो उसी घर पर रहकर शैलजा को हर छोटी बातों पर
ताने मरते थे, सुबह से रात को सोने तक| यहाँ तक तीन या चार में पड़ने वाले बच्चों के
भीतर तक शैलजा की सासु माँ ने इतना जहर भरा था उसके खिलाफ, की वो बच्चे तक
आकर उसे सुना गए, और शैलजा की सास हंसते रही सब सुनकर| खैर........
शैलजा, पाँच-छः महीने बाद बड़ी मुश्किल से अपने मायके
गयी, सिर्फ एक रात रहने को, दिन में जाकर
अगली शाम को घर पहुँच गयी| लेकिन सिर्फ एक रात रहने में उसके घरवालों को जाने किस चीज की खुंदक
लगी, हर किसी से तो वे यही कहते थे कि, वो कुछ काम नही
करती, फिर भी जाने क्यों
इतना बुरा लग गया उन्हें| अगले
दिन जब शैलजा घर पहुंची तो सबका व्यवहार बदला हुआ| शैलजा की बेटी भूमि जब अपने घर पहुँची एयर सबसे
मिली तो शैलजा के सामने उससे सबने पूछा, .... क्या दिया तेरे ननिहाल वालों ने.....पर शैलजा इस बात पर
ध्यान न देकर रसोई में लग गयी| उसे अंदाजा भी नहीं था वो सब उसे क्या सुनाना
चाहतें हैं| वो सबको अपने घरवालों की
तरह समझती है, जो ऐसी चीजों से
मतलब ही नही रखते की कौन क्या कर रहा है| किसने क्या दिया
क्या नहीं दिया|
अगले दिन सुबह
शैलजा के पति ऑफिस जा रहे थे उन्हें आफिस भेजकर वो नहाने की तैयारी कर ही रही थी
वो रसोई में दाल रखने आई वो सोच रही थी भूमि के उठने से पहले काम कर लूं| जब वो काम करने लगी जल्दी में, तब उसकी सासु माँ आयी आकर बोली तू भूमि को दूध
पिलाएगी आज, वो जल्दी में
"हाँ" बोल गयी, उसे तो अंदाजा भी
नहीं था कि उनके मन में चल क्या रहा है....सासूमाँ बोली- "कल तू इतने दिनों
बाद मायके गई थी, भूमि और तेरे हाथ में पैसे दबाये होंगे उससे
मंगा ले| शैलजा कुछ सेर चुप रही | वो इतना ही सुनती तो चुपचाप बात सुन के भूल
जाती, पर अब तो उसकी
सास गुस्से से बोलने लगी-"इतने दिनों बाद गयी पैसे दबाये या नहीं?"इस बार शैलजा के सब्र का बांध टूट गया वो बोली -"क्यों?"
उसकी सास सात-आठ
बार पूछती रही- "पैसे दबाये या नहीं दबाये"?
और वो भी बस
बोलती रही- "क्यों"?
जब एक ही जवाब
सुन के गुस्से में तमतमा गयी तो गुस्से से रसोई से बाहर निकलते हुए बोली जो पैसे
दिए हैं उनसे मंगा ले दूध| उस दिन शैलजा को लगा मेरे लिए तो नाराजगी समझ
आती है में इनके घर का खा रही हूँ, पर मेरे घर वालों के बारे मे कुछ भी कहने का
क्या मतलब?अगर पैसे दिए या नहीं दिए उससे मेरी बेटी कबतक
दूध पीयेगी| उस दिन शैलजा ने कसम खायी
आजतक हर ताना सुन के भी लगी रही, आज के बाद इनके
अमूल्य दूध की न मैं चाय पियउँगी न मेरी बच्ची| भले ही बिना दूध
पिये रह ले मेरी बच्ची|
आज वो फिर दोहरा
चेहरा दिखा सासूमाँ का, "जो कोई आये तो उसके सामने इतना प्यार भरा होता था, जैसे शैलजा सासूमाँ की सगी बेटी हो, पर जब कोई न हो तो सिर्फ ताने और हर काम में
कमी| "
अगर घर में कोई
और होता या नंदे आयी होती तो यही सासूमाँ बोलती -मायके जरूर जाना चाहिए, सबको अपने मायके
की याद आती है, कोई कुछ लेने जो क्या जाता है अपने मायके| आज घर में जब
अकेली थी तो मन की असली भडास निकाल दी|
आगे की कहानी शैलजा की जुबानी देखने के लिए देखिये अगला भाग, ......